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बाल्यकाल का अद्भूत आनंद : प्रफुल्ल मिश्रा

फरीदाबाद : बच्चे को सहज प्रेम का आनंद समझ तु इस को सरस पुष्प का मकरंद समझ बच्चे से कहाँ बढकर है सरल कोई बच्चे को मनुजता का प्रथम छंद समस तु इस को विमल प्यार की मुस्कान समझदो प्यार भरे दिल का मधुर गान समझ अंकुर ही तो कल वृक्ष बनेगा प्यारे बच्चे को महाशक्ति की पहचान समझ बच्चे की पहचान धवल मोती है यह नन्ही सी जान कमल होती है।पूछो पूछो तुम शायर से पूछो बच्चे की मुस्कान गजल होती है। फुलो की मुस्कान हुआ करता है जीने का सामान हुआ करता है बच्चे को समझदार बनाने वालो बच्चा तो भगवान हुआ करता है वह निर्मल है कहाँ हुए पाप उसे क्यों आपे ताप – शाप – संताप उसे बालक तो कोरा कागज होता है गुण – दोष सिखाते है माँ बाप उसे मुन्ने को परम ब्रह्म का उपहार समझ नन्हे को महाकाव्य का आधार समझ बच्चे के बिना पूर्ण कहाँ है नारी बच्चे को मातृत्व का श्रृंगार समझ ।

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