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सरकार अगर बचाव के इंतजाम में मुस्तैदी से जुटी है तो चल रहे बजट सत्र में अक्सर ही कोरोना विषय बन रहा है

देश-दुनिया में इस समय बस एक ही चर्चा है कोरोना के कहर की, तो भला बिहार इससे अछूता कैसे रह सकता है? अचानक आई इस बीमारी ने बिहार की सियासी हवा को भी अपनी चपेट में ले लिया है। सरकार अगर बचाव के इंतजाम में मुस्तैदी से जुटी है तो चल रहे बजट सत्र में अक्सर ही कोरोना विषय बन रहा है। इससे इतर राजनीतिक गलियारे में बस खामोशी सी पसरी है। पर समझने वाले अपने हिसाब से समझ रहे हैं। चुनावी साल है इसलिए हर समझ के अपने अर्थ हैं और दलों के लिए उसके मायने। कोरोना को लेकर हर तरफ हड़कंप है।

कोरोना के लेकर नेपाल बॉर्डर पर 49 स्थानों पर स्क्रीनिंग : भारत में इससे संक्रमित लोगों की संख्या 30 से अधिक पहुंच गई है। दूसरे देशों से आने वालों पर खास नजर है। बिहार की सीमा नेपाल से लगी है इसलिए बिहार सरकार नेपाल के साथ मिलकर इससे लड़ने की तैयारी में है। नेपाल बॉर्डर पर 49 स्थानों पर स्क्रीनिंग की जा रही है। अब तक नेपाल से आने वाले एक लाख बारह हजार लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार इसकी मॉनिटरिंग में जुटे हैं और लोगों से न घबराने की अपील कर रहे हैं। चूंकि बोधगया में विदेशी पर्यटक खूब आते हैं, इसलिए पटना और गया एयरपोर्ट पर डॉक्टरों की टीम बाहर से आने वालों की जांच में जुटी है। बाहर इस तरह के इंतजाम के बावजूद सदन अक्सर रंग बदल रहा है।

सर्विलांस टीम बुलाकर आपका ब्लड सैंपल ले : भाजपा के विधान पार्षद सच्चिदानंद राय मास्क पहन कर पहुंचे और सभापति से विशेष समय की मांग की। उन्होंने जागरुकता अभियान चलाने और साबुन व मॉस्क बांटने पर जोर दिया। इस पर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने पूरी व्यवस्था से अवगत कराते हुए चुटकी ली कि आप कहें तो यहीं सर्विलांस टीम बुलाकर आपका ब्लड सैंपल ले लें। इस पर सच्चिदानंद चुप हो गए। इससे बचाव के लिए कई फार्मूले भी लोग मैसेज कर रहे हैं। अल्कोहल पीने से इससे बचाव का एक मैसेज वायरल हुआ तो सदन में भी चर्चा का विषय बना। चूंकि बिहार में शराबबंदी है सो इसे लेकर चुटकी शुरू हो गई कि जब तक कोरोना है, तब तक के लिए कम से कम मुख्यमंत्री बिहार में शराब चालू करवा दें। बात पहुंचाने के लिए अगुआ भी तय कर लिया गया, पर वह टांय-टांय फिस्स हो गया। सियासी शांति का कारण सिर्फ कोरोना ही हो, ऐसा नहीं है। भीतर ही भीतर तमाम बनते-बिगड़ते समीकरण भी बड़ा कारण हैं।

इस चुनाव में पिछली बार के पूरे समीकरण बदले हुए : पिछले दिनों नीतीश-तेजस्वी की मुलाकात, एनआरसी व एनपीआर पर भाजपा के रुख के विपरीत जदयू के स्टैंड ने कई चर्चाओं को जन्म दे दिया है। दूसरी तरफ महागठबंधन के दलों में संवादहीनता की स्थिति और एकला चलो के अंदाज में बेरोजगारी के खिलाफ तेजस्वी का निकलना उनके ही साथियों की धड़कन बढ़ाए है कि पता नहीं कौन सा गुल खिले? चूंकि इस चुनाव में पिछली बार के पूरे समीकरण बदले हुए हैं। इसलिए संशय स्वाभाविक है, क्योंकि पिछली बार जहां भाजपा के साथ लोजपा, हम, रालोसपा जैसे छोटे दल साथ थे तो जदयू-राजद के साथ कांग्रेस खड़ी थी। चुनाव में महागठबंधन को भारी बहुमत मिला था, लेकिन बीच में समीकरण ऐसे पलटे कि इस बार भाजपा-लोजपा के साथ जदयू खड़ी है और राजद-कांग्रेस के पास हम, रालोसपा जैसे ठौर तलाश रहे हैं। पिछले चुनाव में किसका वोट किसको मिला और किसका दांव दे गया? इसका आकलन मुश्किल है इसलिए सीटों की गणित भी बताने की स्थिति में कोई नहीं?

कांग्रेस चुपचाप अपने संगठन को धार देने में जुटी है। इस बार समीकरण उसके पक्ष में हैं, क्योंकि पिछली बार जदयू के कारण वो तीसरे नंबर की साथी थी और गठबंधन में 41 सीटें ही उसे मिली थी, जिसमें 27 सीटें जीती थीं यानी 65 फीसद से ज्यादा पर जीत। इतनी सीटें 1995 के बाद पहली बार उसे मिली, वह भी इतनी कम सीटों पर भाग्य आजमा कर। इस बार उसकी मांग भी बढ़ने वाली है, क्योंकि जदयू के ना होने से उसका कद भी बढ़ा है। कुछ राज्यों में मिली जीत भी उसका मनोबल बढ़ाए है।

उधर हम, रालोसपा व विकासशील इंसान पार्टी महागठबंधन में होने का सुर भले ही अलाप रहे हैं, लेकिन राजद की तरफ से छाई चुप्पी उनकी बेचैनी बढ़ाए है। पहले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की तरफ हाथ बढ़ाया, ताकि उनके सहारे कुछ मजबूती मिले, लेकिन उधर बात नहीं बनी तो फिर कांग्रेस की तरफ निहार रहे हैं। सुना है कि दिल्ली में कुछ कांग्रेसी नेताओं के साथ बैठक भी हुई है जिसमें राजद से महागठबंधन पर बात करने का आश्वासन दिया गया है। बहरहाल ये दल दाएं-बाएं भी हाथ बढ़ाए हैं।

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