दिल्ली के मतदाताओं ने खूब दबाया था नोटा का बटन 2013 में
विधानसभा हो या फिर लोकसभा चुनाव। अगर, विभिन्न राजनीतिक दलों से लेकर निर्दलीय प्रत्याशी तक अपनी पसंद का नहीं है या फिर योग्यता को लेकर मन में संशय है तो क्या करें। यह सवाल हर मतदाता के जेहन में कौंधता था। इसका जवाब नोटा (नन ऑफ द एवव) के रूप में आया था।
चुनाव आयोग ने जनता को यह अधिकार भी पहली बार वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में थमाया था। यह पहला मौका था जब दिल्ली समेत चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में नोटा का इस्तेमाल किया गया। इसी दौरान पहली बार दिल्ली के लोगों ने भी नोटा दबाया। इसके पहले किसी विधानसभा चुनाव में नोटा का इस्तेमाल नहीं हुआ था। हालांकि, वर्ष 2009 में स्थानीय निकाय के चुनावों में पहली बार नोटा का उपयोग हुआ और यह विकल्प देने वाला छत्तीसगढ़ भारत का पहला राज्य बना था।
चुनाव आयोग ने वर्ष 2013 में विधानसभा चुनाव में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में नोटा का विकल्प दिया। तब दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव हुआ था। इसके बाद 2014 से नोटा पूरे देश मे लागू हुआ। ईवीएम में नोटा का बटन गुलाबी रंग का होता है। 2013 के चुनाव में नोटा का असर भी देखने को मिला। उस वक्त दिल्ली में कुल 49774 मतदाताओं ने नोटा दबाया था। इसमें विकासपुरी सीट पर सर्वाधिक 1426 मत नोटा पर पड़े थे। वहीं मटिया महल में सबसे कम 296 मतदाताओं ने नोटा दबाया था।
राजनीतिक घटनाक्रम के कारण करीब एक साल बाद ही दोबारा हुए विधानसभा चुनाव में नोटा का प्रभाव कम होता दिखा। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में जहां 8 विधानसभा क्षेत्रों में एक हजार से अधिक मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। वहीं, वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र (मटियाला) में ही 1102 मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया। इसके साथ ही वर्ष 2013 में पड़े 49774 नोटा मतों की अपेक्षा वर्ष 2015 के विस चुनाव में कुल 35875 नागरिकों ने नोटा का इस्तेमाल किया। वर्ष 2013 की अपेक्षा मटिया महल में 2015 में नोटा की संख्या कम होकर 203 रही। मटिया महल में 2013 में 296 नागरिकों ने नोटा दबाया था।