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गुजरात में ऐसी क्या ताकत, राजपूतों के अल्टिमेटम से भी क्यों नहीं डर रही भाजपा, समझें समीकरण

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केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला की उम्मीदवारी के खिलाफ राजपूतों का अल्टिमेटम कुछ घंटों में खत्म हो रहा है। फिर भी भाजपा पुरुषोत्तम रुपाला को लेकर अड़ी हुई है और वह राजकोट से ही चुनाव लड़ रहे हैं। राजपूतों का कहना है कि यदि रुपाला को नहीं हटाया गया तो वह भाजपा का बहिष्कार करेंगे। यही नहीं गुजरात के अलावा यूपी, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में भी राजपूतों में गुस्सा देखा जा रहा है। फिर भी राजकोट को लेकर भाजपा अपना इरादा नहीं बदल रही है। यहां तक कि अमित शाह ने गुरुवार को रुपाला का समर्थन किया और कहा कि उन्होंने पूरे मन से माफी मांग ली है।

अमित शाह ने कहा,  ‘मुझे पक्का भरोसा है कि हम गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करेंगे। यही नहीं पहले से ज्यादा अंतर से जीत हासिल होगी।’ राजकोट में ही दलित समुदाय के एक छोटे से आयोजन में रुपाला ने कहा था, ‘कुछ और लोग भी थे, जिन्होंने हमारे यहां शासन किया। ऐसा ही अंग्रेजों ने किया और उन्होंने हमारे उत्पीड़न में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि तब के राजा और शाही खानदानों के लोग अंग्रेजों के आगे झुक गए थे। उनके साथ पारिवारिक रिश्ते रखे। उनसे रोटी और बेटी का रिश्ता रखा। लेकिन यह रुखी (दलित बिरादरी) समाज डटा रहा। मैं इसकी सराहना करता हूं। इसी ताकत ने सनातन धर्म को बचाए रखा है। जय भीम।’

पाटीदार समाज से आने वाले रुपाला के इस बयान को क्षत्रियों ने अपने खिलाफ समझा और आंदोलन शुरू कर दिया। फिर भी भाजपा रुपाला को नहीं हटा रही है तो उसकी वजह यह है कि वह जिस पटेल बिरादरी से आते हैं, उसकी गुजरात की राजनीति में बड़ी पकड़ है। लेवा और कड़वा पटेलों की आबादी मुख्य तौर पर सौराष्ट्र में अधिक है, लेकिन कारोबारी प्रभुत्व एवं अन्य इलाकों में भी बसने के चलते वह पूरे गुजरात में असर रखते हैं। पटेल लॉबी की ताकत यह है कि मौजूदा सीएम भूपेंद्र पटेल भी इसी समुदाय से हैं। उनसे पहले भी 5 और मुख्यमंत्री गुजरात में पटेल ही रह चुके हैं।

रुपाला ने दो बार मांगी माफी, फिर भी राजी नहीं हुए राजपूत

पटेलों की गुजरात में आबादी 12 से 15 फीसदी के करीब है। आमतौर पर यह वोट एकजुट होकर ही पड़ता रहा है। ऐसे में भाजपा इसे ज्यादा अहम मानती है। वहीं राजपूतों की गुजरात में आबादी 4 से 5 फीसदी ही है। भाजपा नेतृत्व का मानना है कि रुपाला ने इस मामले में दो बार माफी मांग ली है। ऐसे में क्षत्रिय समाज को अब यह मुद्दा खत्म कर देना चाहिए। फिर भी राजपूतों का गुस्सा कायम है और गुजरात के कई शहरों में रुपाला के खिलाफ पोस्टर लगाए जा रहे हैं। यही नहीं राजपूत संगठनों का कहना है कि हम भाजपा को हराने के लिए हर जगह कैंडिडेट खड़े करेंगे।

राजपूतों में आपसी बंटवारा कम नहीं, इसलिए भाजपा बेफिक्र

फिर भी भाजपा ज्यादा फिक्रमंद नहीं है तो इसकी वजह राज्य का समीकरण है। राज्य में क्षत्रियों की आबादी 15 फीसदी के करीब है, लेकिन उनका बड़ा हिस्सा ओबीसी में आता है। यह देश के दूसरे राज्यों से अलग स्थिति है, जहां सारे ठाकुर जनरल में आते हैं। ऐसे में गुजरात में जनरल में आने वाले राजपूतों की संख्या 4 से 5 फीसदी ही है। इस तरह राजपूतों में ही बंटवारा है। कोली और दूसरे ओबीसी क्षत्रियों को साथ ला पाना ठाकुर नेताओं के लिए मुश्किल होगा। यही वजह है कि भाजपा राजपूतों के गुस्से के बदले पटेल समाज के नेता पुरुषोत्तम रुपाला को नहीं हटाना चाहती।

NEWS SOURCE : livehindustan

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