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जीवन दर्शन: इन बातों का जरूर रखें ध्यान, पाना चाहते हैं जीवन में सुख और शांति तो

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मूल रूप में हम आत्मा हैं। प्रेम स्वरूप हैं। इस सत्य स्वरूप या आत्मिक स्थिति में स्थित होकर हम असीम प्रेम व स्नेह की ऊर्जा का संचार कर सकते हैं। प्राणी, प्रकृति और पूरी सृष्टि के साथ अपने संबंधों को हम मधुर व स्नेह संपन्न बना सकते हैं। आवश्यकता यह है कि हम शाश्वत प्रेम के अर्थ को जानें, उसकी परिभाषा समझें तथा अपनी दृष्टि, वृत्ति, रुचि, स्नेह और श्रद्धा को बाह्य तत्वों से आत्मिक सत्यों की ओर मोड़ें अर्थात अपने मन, बुद्धि एवं भावनाओं को निर्मल स्नेह स्वरूप अंतरात्मा की ओर मोड़ें और इन्हें शाश्वत प्रेम के सागर परमात्मा के साथ जोड़ें।

इस आत्म-परमात्म योग या आत्मिक स्नेह मिलन की अनुभूति के बाद हमें प्रेम की भावनाओं को दिखाने की आवश्यकता नहीं है। हमारी पूरा जीवन ही प्रेममय हो जाएगा। क्योंकि, हम अपने आप में प्रेम ही हैं और हमारा सत्य स्वरूप और स्वाभाविक स्वभाव भी प्रेम ही है। लेकिन, कई बार हमारे अंदर का असुरक्षा भाव, दूसरों के प्रति दोष-दृष्टि, क्रोध, प्रतिस्पर्धा, अपमान या आहत होने की भावनाएं हमारे असीम प्रेम के निर्मल प्रवाह को बाधित व दूषित कर देते हैं। अंदर का व्यर्थ, अस्वस्थ एवं नकारात्मक सोच व दृष्टिकोण हमारी स्नेह की कोमल भावनाओं का दमन कर देते हैं। प्रेम के स्वच्छ और शाश्वत स्रोत में अवरोध उत्पन्न करते हैं।

आज सच्चा प्रेम पाने या अनुभव करने के लिए हम किसी अन्य पर आश्रित हो जाते हैं। क्योंकि, आत्मिक स्नेह का मूल अंतरात्मा से तथा आत्मिक प्रेम के शाश्वत स्रोत परमात्मा से हमारी मन, बुद्धि व भावनाओं का नाता टूट गया है। इसलिए अगर हम अपने से या दूसरों से अहैतुक प्रेम पाना चाहते हैं, तो हमें भी उन्हें बिना किसी शर्त प्यार देना होगा। इसके लिए, हमें स्वयं को अर्थात अपने सत्य स्वरूप को जानना होगा और सच्चे प्रेम को समझना होगा। साथ ही, दूसरों की भावनाओं और अपेक्षाओं को भी महसूस करना होगा।

सच्चा प्रेम कोई बाहरी स्थूल वस्तु नहीं है, जिसे जब चाहे खरीदा या बेचा जा सके या उपयोग कर परित्याग किया जा सके। सच्चा प्रेम तो हमारी अपनी प्रकृति के रूप में हमारे अंदर निहित है। उसे मात्र आध्यात्मिक ज्ञान और योग बल से जगाने की देरी है। निश्छल प्रेम वास्तव में स्वयं और सबके प्रति समानता पूर्वक आत्मिक स्नेह, दया, करुणा, सहानुभूति और संवेदनशीलता भरी शुभ भावना व शुभकामनाओं से प्रस्तुत होने की सहज, सरल और पवित्र मानसिकता है। शाश्वत प्रेम तो स्वयं को तथा औरों को बिना किसी शर्त या पूर्वाग्रह के समझने, समझाने, सहने, समाने, स्वीकारने एवं सराहने की आध्यात्मिक अभिव्यक्ति है।

मोह हमें मायावी बंधन में बांधता है

अक्सर प्रेम को कुछ नकारात्मक संवेदनाओं, जैसे-मोह, अपेक्षा, चिंता, तनाव, भय या क्रोध की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है, जो ठीक नहीं है। मोह या आसक्ति हमें शक्तिहीन बनाता है, जबकि सच्चा स्नेह या प्रेम हमें शक्तिशाली बनाता है। हमारे सांसारिक संबंधों को मजबूत करता है। दैहिक व सांसारिक मोह हमें मनोविकार, बुराई और व्यसनों के मायावी बंधन में बांधता है। कर्म बंधन व कर्म भोग के बीच भंवर में फंसाता है, जबकि प्राणी, प्रकृति और हर व्यक्ति के प्रति हमारा आत्मिक स्नेह, संवेदना व सद्भावना हमें और औरों को स्वच्छ, स्वस्थ, खुशहाल एवं वैभवशाली बनाता है।

वर्तमान में पारिवारिक, व्यावसायिक, सामाजिक एवं वैश्विक संबंधों में टकराव का मूल कारण लोगों का दृष्टिकोण एवं भौतिकवादी मानसिकता है, जिसके कारण जाति, धर्म, वर्ण, भाषा, प्रांत, रंग, रूप के आधार पर भेदभाव, पक्षपात और अनैतिक आचरण होता है। ऐसे प्रतिकूल वातावरण को जीवन अनुकूल बनाने की आवश्यकता है। इस गुणात्मक या सकारात्मक बदलाव की प्रक्रिया में सर्वप्रथम मानवीय सोच, विचार, भावना, दृष्टि, वृत्ति, कर्म, व्यवहार, संस्कार और संबंधों में सुधार लाने की आवश्यकता है। इस सुधार की आधारशिला के रूप में मानव जीवन और संबंधों में सत्य बोध, आत्मबोध व आत्मिक प्रेम की आवश्यकता है। प्रेम की इस आत्मिक परिभाषा, प्रयोग और सही अभिव्यक्ति से ही जनजीवन, घर-परिवार, कारोबार, समाज और प्रकृति के आपसी संबंधों में मौजूद संघर्ष, तनाव, कटुता, टकराव व हिंसा आचरण समाप्त होगा। आत्मिक स्नेह की वृत्ति से हमारी सांसारिक प्रवृत्ति, बाहरी प्रकृति, पर्यावरण व वातावरण में सच्ची शांति, समृद्धि, स्वच्छता, स्थिरता एवं संतुलन विकसित होगा।

पूरी मानवता आज क्षणभंगुर इंद्रियभोग और दैहिक प्रेम से ऊब चुकी है। दैहिक आकर्षण, भौतिक भोग एवं विकारों की आग में जलते हुए आज के मानव को आत्मिक स्नेह, प्रेम, सहयोग की आवश्यकता है। इस आत्मिक स्नेह, शांति और शक्ति को अपने में, अपनों में तथा औरों में प्रसारित करना वर्तमान समय और समाज की मांग है। पूरी मानवता को आध्यात्मिक ज्ञान, परमात्मा ध्यान, आत्मिक प्रेम एवं निस्वार्थ सेवा भाव को दैनिक जीवन में अपनाने की आवश्यकता है।

इस आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग ध्यान-अभ्यास की प्रक्रिया से हम सही सोचने, समझने, परखने और सही समय पर सही निर्णय लेने की आंतरिक शक्ति व क्षमता विकसित कर पाएंगे। इस आध्यात्मिक ज्ञान से हमारे संपर्क में आने वाले जो लोग हैं, जैसे हैं, उनको हम बिना किसी शर्त, बिना किसी तुलना के या किसी अपेक्षा के सहज ही स्वीकार कर सकते हैं। इस सकारात्मक प्रक्रिया में मानव समाज के प्रति हम अपने अहैतुक आत्मिक प्रेम को प्रकट व संचारित कर सकते हैं। हमें ईश्वर के समान सदा प्रेम-स्वरूप की मनोस्थिति में रहना है। तब हमारी दृष्टि में जड़ और जीव जगत बेहतर, स्वच्छ, स्वस्थ, संतुलित, सुखदाई, स्वर्णिम व प्रेममय हो जाएगा।

NEWS SOURCE : jagran

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