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दिलचस्प है इसका इतिहास, नए संसद भवन में स्थापित हुआ 5000 साल पुराना सेन्गोल! : Sengol History

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History Of Sengol: नए संसद भवन (New Parliament Building) के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने आज लोकसभा (Lok Sabha) के आसन के पास ऐतिहासिक और पवित्र सेन्गोल (Sengol) की स्थापना की. शनिवार शाम प्रधानमंत्री आवास पर सेन्गोल को लेकर एक कार्यक्रम हुआ था और तमिलनाडु से आए अधीनम महंतों ने प्रधानमंत्री को पवित्र राजदंड ‘सेंगोल’ सौंपा था. देश की नई संसद का उद्घाटन हो चुका है. 140 करोड़ देशवासियों की आशाओं और सपनों की प्रतीक ये भव्य इमारत कई मायनों में खास है. इसमें सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक सेन्गोल को भी स्थापित किया गया है. सेन्गोल का इतिहास क्या है? आखिर क्यों इसे पीएम मोदी की पहल पर लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के पास जगह दी जा रही है आइए जानते हैं.

 

सेन्गोल का इतिहास

सेन्गोल का इतिहास बेहद प्राचीन है और तमिल संस्कृति की विरासत का अहम हिस्सा है. इसको ब्रह्मदंड भी कहते हैं. तमिल में इसे सेंगोल कहते हैं. हिंदी में इसे राजदंड कहा जाता है यानी अधर्म का नाश करने वाला. जैसे एक मंदिर बनाने के बाद में देवता स्थापित करने का महत्व होता है. बड़ा मंदिर बनाने से नहीं, मंदिर के अंदर भगवान होना चाहिए. ऐसे ही लोकसभा के अंदर सेन्गोल भगवान का स्वरूप है. ऐतिहासिक सेन्गोल को नई संसद की लोकसभा में स्पीकर की कुर्सी के पास स्थापित किया गय. इस ऐतिहासिक सेन्गोल को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को सौंपा गया था. 15 अगस्त, 1947 की भावना को दोहराते हुए ठीक वैसा ही समारोह 28 मई को नई दिल्ली में संसद परिसर में दोहराया गया. इस मौके पर तमिलनाडु के कई आधीनमों के प्रणेता उपस्थित रहे. स्थापना से पहले सेन्गोल को गंगा जल से शुद्ध किया गया. सेन्गोल को एक पवित्र प्रतीक के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपा गया. इसे 5000 साल पुरानी महाभारत से भी जोड़ा जाता है. दावा किया जाता है कि सेंगोल को राज्याभिषेक के समय युधिष्ठिर को दिया गया था.

 

सेन्गोल क्या है?

तमिल शब्द सेन्गोल का अर्थ ‘संपदा से संपन्न’ है जोकि चोल साम्राज्य की परंपरा का हिस्सा था. चांदी और सोने से बनी सेन्गोल की लंबाई 5 फीट और वजन 800 ग्राम है. सेन्गोल के शीर्ष पर नंदी प्रतिमा धर्म-न्याय का प्रतीक है. नंदी के नीचे गोला दुनिया का प्रतीक है और इसमें लक्ष्मी की आकृति वैभव-समृद्धि की प्रतीक मानी जाती है. ऐसे में सवाल उठता है कि जब सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक सेन्गोल को पंडित नेहरू को सौंपा गया तो उनकी वॉकिंग स्टिक कैसे बन गई और उनकी निजी संपत्ति के रुप में इलाहाबाद म्यूजियम में कैसे पहुंच गई. म्यूजियम में अब सेन्गोल नहीं है, लेकिन वहां साफ-साफ लिखा है पंडित जवाहर लाल नेहरू को भेंट स्वरूप प्राप्त सुनहरी छड़ी. वहीं जब ज़ी न्यूज़ ने इलाहाबाद म्यूजियम के संचालक से सवाल किया कि आखिर ये सेन्गोल नेहरू को कब मिला तो उनके पास कोई प्रमाणिक जवाब नहीं था.

 

सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है सेन्गोल

सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक सेन्गोल कई साल तक गुमनाम तरीके से इलाहाबाद म्यूजियम में रहा, जिसे लेकर बीजेपी लगातार कांग्रेस और गांधी परिवार पर निशाने पर ले रखा है. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि जो धर्म का दंड है वो प्रतीक भारत की लोतांत्रिक आजादी का है. उस प्रतीक को जो हमारे स्वर्णिम इतिहास का विशिष्ठ अंग है, गांधी खानदान ने एक म्यूजियम के किसी अंधेरे कोने में नेहरु की छड़ी के रूप में वर्षों-वर्ष तक रख रखा था.

 

वहीं कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने सेन्गोल को लेकर किए जा रहे सभी दावों को फर्जी बताया है. उन्होंने ट्वीटकर दावा किया कि सेन्गोल को मद्रास शहर में तैयार कर अगस्त 1947 में नेहरू को भेंट किया गया. सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के दस्तावेज मौजूद नहीं हैं. इस बात को माउंटबेटन, राजाजी और पंडित नेहरू ने भी माना है. सेन्गोल को लेकर किए जा रहे तमाम दावे फर्जी हैं. कुछ लोगों के दिमाग की उपज को फैलाया जा रहा है.

बीजेपी कांग्रेस के इस बयान को अधीनम के इतिहास का अपमान बता रही है. वहीं भारत के पहले भारतीय गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी के प्रपौत्र ने भी कांग्रेस के दावे को झूठा बताया है. सीआर केसवन के प्रपौत्र सी राजगोपालाचारी ने कहा कि पिछले कुछ दिनों में, हमने बहुत से झूठे तथ्य और नकली कहानियों को सुना है जो हमारे महत्व को कम करने करने के लिए बुनी गई हैं. पवित्र सेन्गोल ने सत्ता के हस्तांतरण को दर्शाने में भूमिका निभाई. अब ये झूठ निर्णायक रूप से पराजित हो गए हैं.

 

NEWS SOURCE : zeenews

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