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सबसे ज्यादा 19 से 25 साल के युवा बन रहे शिकार, कैसे ऑनलाइन गेम्स बना रहे बच्चों को जुआरी?

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पिछले कुछ समय के दौरान आपने कुछ ऐसे ‘एप्स’ के विज्ञापन देखे होंगे, जिनमें खेल जगत की कुछ प्रसिद्ध हस्तियां आनलाइन गेम्स को प्रोत्साहित करती दिखाई देती हैं। हालांकि उसी विज्ञापन में तेज गति से चेतावनी भी दी जाती है कि इन गेमों को संभलकर खेलें, इसकी लत लग सकती है। वास्तव में आज अनेक युवा इन हस्तियों द्वारा सुझाई एप्स की गेम्स में डूबते जा रहे हैं। देश में इंटरनेट और स्मार्टफोन के विस्तार के कारण इस ‘मनी गेमिंग’ उद्योग का खासा विस्तार हुआ है। माना जा रहा है कि वर्ष 2025 तक इस उद्योग का व्यवसाय पांच अरब डालर से अधिक हो जाएगा।

रियल मनी गेम्स :

विभिन्न प्रकार की आनलाइन और एप्स आधारित गेम्स, जिनमें आभासी खेल यानी फेंटेसी स्पोर्ट, रम्मी, लूडो, शेयर ट्रेडिंग संबंधित गेम्स, क्रिप्टो-आधारित गेम्स आदि गेम्स रियल मनी गेम्स कहलाती हैं, जो पैसे और इनाम के लिए खेली जाती है। ये खेल कौशल (स्किल) आधारित भी होती है और संयोग (चांस) आधारित भी। लेकिन खेल कैसे भी हों, इनका विस्तार भी होता जा रहा है और इसमें कई कंपनियां भी अपनी एप्स और वेबसाइटों के माध्यम से शामिल हो चुकी हैं। जबसे इन गेम्स का प्रादुर्भाव हुआ है, युवाओं द्वारा कर्ज में फंसकर जान गंवाने के कई मामले सामने आए हैं। दरअसल इन गेम्स में जीतने की संभावना कम होती है, कुछ मामलों में तो इन एप्स के कारण जुए की लत के चलते युवाओं द्वारा भारी कर्ज उठाने के कारण परिवार भी बर्बाद हुए हैं। एक संबंधित रिपोर्ट बताती है कि इन एप्स के माध्यम से जुए की लत के कारण आत्महत्या करने वाले अधिकांशत: 19 से 25 वर्ष के युवा हैं, जिसमें विद्यार्थी और प्रवासी मजदूर आदि शामिल हैं।

 

 

कौशल या संयोग :

कई न्यायालयों ने भी इन काल्पनिक खेलों को यह कहकर सही ठहराया है कि यह जुआ नहीं, बल्कि कौशल का खेल है। तो भी मामले की गंभीरता को समझते हुए छह राज्य सरकारों ने अभी तक काल्पनिक क्रिकेट प्लेटफार्मो को प्रतिबंधित किया है अथवा अनुमति नहीं दी है। इस कड़ी में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाइएस जगन मोहन रेड्डी ने 132 एप्स को प्रतिबंधित करने के लिए निवेदन किया है।

 

 

हालांकि कुछ अध्ययन यह मानते हैं कि इस काल्पनिक क्रिकेट खेल में जीतने के लिए कुछ भी संयोग नहीं है, इसलिए यह जुआ नहीं है, लेकिन कुछ खेल मनोविज्ञानी मानते हैं कि काल्पनिक क्रिकेट जुआ ही है और इसके कारण जुए के व्यवहार का रोग लग सकता है। वैसे इस ‘उद्योग’ से जुड़े अनेक लोगों का यह तर्क है कि काल्पनिक खेलों की आदत लगने का कोई कारण भी नहीं है और इसमें टिकट का औसत मूल्य 35 रुपये ही है, इसलिए इससे एक व्यक्ति अपने जीवन काल में 10 हजार रुपये से ज्यादा का नुकसान नहीं कर पाएगा। लेकिन इन ‘खेलों’ में हारकर लाखों रुपये के कर्जे के कारण आत्महत्या तक करने की खबरों के सामने आने से यह बात असत्य सिद्ध हो जाती है।

 

सच्चाई यह है कि लोग इन आभासी खेलों के कारण बहुत पैसा खो रहे हैं और इस खेल से बाहर नहीं निकल पा रहे। नव उदारवादी आर्थिक सिद्धांतों में जोखिम लेना न केवल महत्वपूर्ण कहा जाता है, बल्कि उसको महिमा मंडित भी किया जाता है। नव उदारवादी नीतियों के युग में कई वित्तीय उपकरण का प्रवेश हो चुका है और सट्टेबाजी आज की अर्थव्यवस्थाओं का अभिन्न अंग बन चुका है। हालांकि शेयर बाजार, वस्तु बाजार, और विदेशी विनिमय बाजारों में सट्टेबाजी के कई दुष्परिणाम भी हैं, लेकिन उन्हें वैधानिक अनुमति मिली हुई है। सट्टेबाजी के आम जीवन में प्रवेश के कारण, आभासी खेलों के चलन को भी सामान्य स्वीकार्यता मिल गई। लेकिन जहां सट्टेबाजी में भी कुछ संयोग का अंश होता है, वहीं आभासी खेलों में तकनीकी रूप से तो यह तर्क दिया जा सकता है कि यह संयोग का खेल नहीं है। वास्तविकता यह है कि खिलाड़ी समझ-बूझकर इस खेल में प्रवेश नहीं करते और कौशल से ज्यादा संयोग पर ही निर्भर करते हैं। हो सकता है कि कुछ खिलाड़ी जीतें और कुछ हारें, लेकिन सच यह है कि इन खेलों से जुड़ी एप्स कंपनियां लगातार जीत रही हैं और भारी लाभ भी कमा रही हैं। यही कारण है कि वे बीसीसीआइ सरीखे क्रिकेट आयोजकों को भारी शुल्क देकर प्रायोजक अधिकार खरीद रही हैं। समझना होगा कि उनका लाभ उन गरीब विद्यार्थियों, मजदूरों, किसानों और आम आदमी की कीमत पर है, जो इन खेलों में अपना सब कुछ लुटा देते हैं।

 

न्यायालयों को अभी यह तय करना बाकी है कि क्या वास्तविक पैसे का दांव लगाने वाली तथाकथित कौशल आधारित गेम्स जुआ है। यदि संयोग का अंश रहता है तो देश के कानून के अनुसार वह वैधानिक नहीं हो सकता। कई कंपनियां कौशल आधारित खेलों की आड़ में विशुद्ध जुए के प्लेटफार्म चला रही हैं। बड़ी बात यह है कि इन एप्स ने बड़ी मात्र में विदेशी निवेशकों से निवेश लिया हुआ है और उनका एकमात्र उद्देश्य लोगों को जुए की लत लगाना है। इन एप्स का डिजाइन ही लत लगाने वाला है।

 

ऐसे में भारत सरकार और संबंधित प्रशासनिक मंत्रलय हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकते। युवाओं को जुए में धकेलती एप्स को प्रतिबंधित करने की जरूरत है। इस मामले में वित्त मंत्रलय, उपभोक्ता मामलों के मंत्रलय, इलेक्ट्रानिक, टेलीकाम एवं आइटी मंत्रलय तथा ग्रह मंत्रलय, सभी को सम्मिलित रूप से निर्णय लेना होगा और विद्यार्थियों, युवाओं, मजदूरों और आमजन को जुए की लत लगाने वाली इन एप्स से मुक्ति दिलानी होगी। आजकल बड़ी संख्या में युवा आनलाइन गेम्स के प्रति बहुत अधिक आकर्षित हो रहे हैं, जिनमें जुए की तरह इसकी लत लग चुकी है, लिहाजा समय रहते इसमें संतुलन साधना होगा

 

डा. अश्विनी महाजन, प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय

 

 

 

source news : jagran

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