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जानें क्या है एक्सपर्ट की सलाह, युवाओं में हेल्दी और सुदंर दिखने का दबाव बढ़ा रहा बर्नआउट का खतरा

Know what the experts advise, the pressure to look healthy and beautiful among the youth is increasing the risk of burnout

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IMAGES SOURCE : GOOGLE

कामकाजी स्त्रियों को कार्यस्थल पर कई परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। घर से कार्यस्थल जाने और घर लौटने से लेकर काम से जुड़ी दूसरी दिक्कतें भी गाहे-बगाहे आती रहती हैं। महिलाओं का एक बड़ा वर्ग है, जो हर तरह की दुकानों में सेल्स गर्ल का काम करता है। सेल्स गर्ल को अपनी नौकरी में हर दिन आठ घंटे से लेकर दस घंटे तक खड़े रहना पड़ता है। कई संस्थानों या दुकानों में उन्हें पूरे दिन बैठने की इजाजत नहीं होती। इसकी वजह से औरतों को कई शारीरिक-मानसिक दिक्कतों से जूझना पड़ता है।

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केरल के बड़े-बड़े शो रूम में काम करने वाली स्त्रियों द्वारा काम के दौरान बैठने के अधिकार की मांग से शुरू हुए एक आंदोलन ने आज एक बड़ा रूप ले लिया है। इसी तरह के एक प्रसिद्ध शो रूम में काम करने वाली माया देवी ने जब अपने मालिकों से काम के दौरान कुछ देर बैठने का अधिकार मांगा, तो उनकी नौकरी चली गई। माया देवी कहती हैं, ‘हमें कार्यस्थल पर शौचालय की सुविधा भी नहीं थी। मैं पूरा दिन पानी भी बहुत कम पीती थी। मुझे पैरों में हमेशा दर्द बना रहता। यूरिनरी इन्फेक्शन से पीड़ित रहती थी। इसके अलावा भी कई स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें रहने लगी थीं।’ चार साल पहले नौकरी से निकाले जाने के बाद वो ‘राइट टु सिट’ आंदोलन का हिस्सा बनीं ताकि अपने और अपनी तरह की दूसरी सेल्स वूमन के अधिकारों के लिए लड़ सकें।

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इस आंदोलन की मुखिया पी.विजी पेशे से दर्जी हैं। एक प्रमुख अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार सेल्स वूमन का काम करने वाली स्त्रियां कम पढ़ी-लिखी और गरीब तबके की होती हैं और अपने अधिकारों और श्रम के कानून से वाकिफ नहीं होतीं। पी. विजी ने खुद काम करने के दौरान काफी संत्रास झेला और तय किया कि वो अपनी साथी कामगारों को उनका हक दिलाएंगी। उनका मानना है कि काम के दौरान जब दुकान या शो रूम में ग्राहक नहीं होते, उस समय सेल्स गल्र्स को कुछ देर के लिए बैठने देना चाहिए। यही नहीं, कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए शौचालय की व्यवस्था भी होनी चाहिए। केरल से शुरू हुआ राइट टु सिट आंदोलन अब अन्य राज्यों में भी फैल गया है और इसका असर भी नजर आने लगा है।

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फिटनेस की दीवानी है यह पीढ़ी

2024 ग्लोबल वेलबीइंग रिपोर्ट के अनुसार जेनरेशन जेड (1996 से 2010 के बीच पैदा हुए लोग) अपनी फिटनेस और सेहत को लेकर जुनूनी रहते हैं। इतना कि इसका असर उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर दिखने लगता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अपनी इमेज को लेकर सतर्क रहने वाली यह पीढ़ी बॉडी र्शेंमग के डर से जिम या योग सीखने जाती है। उन्हें लगता है कि सोशल मीडिया पर उनकी जो भी तस्वीर आए, वो परफेक्ट होनी चाहिए।

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49 प्रतिशत युवा महसूस करते हैं बर्नआउट

लुलुलेमन के चौथे ग्लोबल वेलबीइंग रिपोर्ट में नतीजों में शामिल 89 प्रतिशत युवाओं ने माना कि उन पर सेहतमंद और सुंदर दिखने का दबाव हमेशा हावी रहता है। 53 प्रतिशत युवाओं ने माना कि उन्हें सेहत को बेहतर रखने के बारे में इधर-उधर से जो टिप्स या नुस्खे मिलते हैं, वो अकसर भ्रामक होते हैं। 49 प्रतिशत युवाओं ने यह भी कहा कि वो इस दबाव की वजह से बर्नआउट महसूस करते हैं। यही नहीं, कई युवा यह भी मानते हैं कि वे इस वजह से मानसिक तनाव के भी शिकार हुए हैं। बीजीएस अस्पताल, बैंगलुरु में इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ बालकृष्ण जीके कहते हैं, ‘जेन जेड अपनी पहले की पीढ़ियों के मुकाबले एक तन्हा और आत्मकेंद्रित पीढ़ी है।

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डॉक्टर की सलाह

यह दिक्कत सिर्फ हमारे देश की नहीं, पूरी दुनिया की है। समय रहते युवाओं को समझना होगा कि आपके शरीर की जरूरतें क्या हैं। यही नहीं, बर्नआउट से बचने के लिए उन्हें भेड़चाल से बचना होगा। सेहत बनाने के लिए वो तरकीबें अपनानी होंगी, जो उनका डॉक्टर उनके लिए सही माने।’ परफेक्ट लाइफस्टाइल की चाह में उलझी जेन जेड को डॉ. बालकृष्ण यही सलाह देते हैं कि वे बहुत कठिन डाइटिंग से बचें। संतुलित आहार लें, नियमित व्यायाम करें और निजी जिंदगी और नौकरी के बीच संतुलन साधना सीखें। उनका मानना है कि तनाव बर्नआउट का एक बहुत बड़ा कारण है। दूसरों को दिखाने के बजाय, अपने लिए जीना शुरू करें।

NEWS SOURCE Credit : livehindustan

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